तेनालीराम एक विदूषक कवि थे| तेनालीराम सोलवी शताब्दी में विजयनगर राज्य के राजा कृष्णदेव राय के दरबार में दरबारी थे| वह अपनी वाक- पटुता और बुद्धिमता के लिए जाने जाते थे|
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Tenali Ram aur sone ke aam |Tenali Raman and Golden Mangoes |
तेनालीराम और सोने के आम | Tenali Raman and Golden Mangoes
एक बार राजा कृष्णदेव राय अपने राज-कार्य में व्यस्त थे| थोड़ी देर बाद वह चिंता से गिर गए और उन्होंने राजगुरु जी से कहा "गुरु जी कल मेरी माता जी की पुण्यतिथि है| और मैं उनके लिए सोच कर दुखी हो रहा हूँ |तब राजगुरु जी ने कहा "महाराज जी, जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु भी निश्चित रहती है| इसीलिए दुखी होने की जरूरत नहीं है| यह तो सृष्टि का नियम है|" राजा कृष्णदेव राय ने कहा "गुरु जी, मैं इसलिए दुखी नहीं हूँ, मुझे भी ज्ञात है कि मृत्यु निश्चित रहती है, लेकिन मुझे दुख इस बात का है कि मैं उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाया|" राजगुरु जी ने आश्चर्य से पूछा कि आप महाराज होकर भी उनकी अंतिम इच्छा पूरी नहीं कर पाए|
तब राजा कृष्णदेव राय ने कहा "मेरी माता जी को आम खाने का बहुत शौक था| लेकिन जब उनका अंतिम समय चल रहा था तब उस समय आम का मौसम नहीं था| और मेरी सारी पूंजी लगाकर भी मैं आम नहीं खरीद पाया|" तब राजगुरुजी ने सोचा ! मुझे इस अवसर को ऐसे ही जाने नहीं देना चाहिए और उन्होंने दुखी होते हुए कहा "महाराज जी, मैं कुछ कहना चाहता हूँ, लेकिन समझ नहीं आता कैसे कहूँ?" तब महाराज कृष्ण देव राय ने कहा " गुरु जी, आप जो कहना चाहते हैं; खुलकर कहिए|" तब राजगुरु जी ने कहा " अगर आपकी माता जी की अंतिम इच्छा पूरी नहीं हुई तो उनकी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी|" तब महाराज कृष्ण देव राय ने कहा " मैं उनकी आत्मा की शान्ति के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हूँ |"
गुरुजी ने कहा "महाराज इसका सरल सा उपाय है| आप कुछ ब्राह्मणों को भोजन के लिए आमंत्रित कीजिए और उन्हें उपहार स्वरूप एक सोने का आम दीजिए|" तब राजा ने कहा "क्यों थोड़े से ब्राह्मण? क्यों नहीं हम सौ ब्राह्मणों को बुलाए और उन्हें उन्हें सोने के आम भेंट दे|" ब्राह्मणों की व्यवस्था आप देख लीजिए और सोने के आम बनवाने की आज्ञा में सुनारों को दे दूँगा|
राजगुरु जी लालच से भर गए "सौ आम मैं अपने सारे रिश्तेदारों को बुला लूँगा |लेकिन उस तेनाली राम को नहीं बुलाऊंगा|तेनालीराम को भी भोज के दिन का पता चला| तेनालीराम ने सोचा कि सभी ब्राह्मण महाराज से सोने के आम लेकर उनको कृतज्ञ करके उनकी माताजी की आत्मा की अंतिम इच्छा पूरी कर रहे हैं; जरूर कोई चतुराई है|
तेनाली महल के अंदर का नजारा देख रहे थे कि महाराज सभी ब्राह्मणों को खरे सोने से बना आम बाँट रहे थे और उन्हें कृतज्ञ करने के लिए धन्यवाद दे रहे थे| राजगुरु जी ने कहा "महाराज अब आपको चिंता करने की आवश्यकता नहीं है| और अभी आपकी माता जी को शांति मिल गई है|"
तेनाली राम महल के बाहर खड़े होकर यह सब नजारा देख रहे थे| और जैसे ही ब्राह्मण उनके सामने आए तो उन्होंने निवेदन पूर्वक कहा "ओ ब्राह्मण देवता, आज मेरी माता जी की भी पुण्यतिथि है |उनकी भी अंतिम इच्छा पूरी नहीं हुई है| उनकी भी आत्मा की शान्ति के लिए कुछ ब्राह्मणों की आवश्यकता है| राजगुरुजी ने कहा "हम समझ सकते हैं तेनालीराम हम आपकी सहायता अवश्य करेंगे|" यह कहते हुए राजगुरु जी सोच रहे थे कि तेनालीराम हमें क्या उपहार देंगे|
राजगुरुजी ने कहा "तुम हमारे भोज की चिंता ना करो, वह हमने पहले ही कर लिया है| लेकिन तुम उनकी अंतिम इच्छा के लिए जो भेंट देना चाहते हो वह हम स्वीकार कर सकते हैं|" तेनालीराम मैंने कहा "मैं आपका कृतज्ञ हूँ "और सभी खुशी-खुशी तेनाली राम के साथ चल दिए|
तेनालीराम उन्हें एक बंद कमरे की तरफ ले गए| जैसे ही सभी ब्राह्मण कमरे के अंदर गए तो वहाँ का नजारा देख कर आश्चर्य में पड़ गए कि लोहार दो लोहे की सलाखों को भट्टी में तपा रहे हैं| राजगुरु जी ने पूछा "वह क्या कर रहे हैं? वह क्यों लोहे की सलाखों को आग में तपा रहे हैं ?"
"मेरी माता जी को गठिया रोग हो गया था |"तेनालीराम ने कहा उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनके पैर को गर्म लोहे की सलाखों से दागा जाए ताकि उनका गठिया का इलाज हो सके और जैसे ही मैं लोहे की सलाखों को गर्म करके लाता उससे पहले उनका देहांत हो गया और उनकी अंतिम इच्छा अधूरी रह गई| इसीलिए मुझे कुछ ब्राह्मणों की आवश्यकता है ताकि लोहे की सलाह के दाग जाने के लिए सहमत हो सके |"
राजगुरु जी ने "क्या आप मजाक कर रहे हैं?" तो तेनाली बोले "नहीं, ब्राह्मण देव जैसे आपने राजा कृष्णदेव राय की माताजी की अंतिम इच्छा पूरी करने में मदद की; वैसे ही आप मेरी माता जी की भी अंतिम इच्छा पूरी करने में मदद कीजिए | और ब्राह्मणों ने देखा कि वह दोनों लोहार लोहे की सलाखे लाकर उनके ऊपर दाग ने ही वाले थे| वह सभी जोर से चिल्लाये "हमें बाहर जाने दो और चाहे तो तुम ये सोने के आम भी रख लो| और हमें बाहर जाने दो|"
सभी ब्राह्मण अपने आम वहीं तेनालीराम के पास छोड़कर वहां से भाग गए|
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